New Education Policy 2020: सदियों से अपने ज्ञान और अध्यात्म का प्रकाश फैला रहे भारत को दुनिया का विश्व गुरु कहा जाता रहा। हमारे नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षण संस्थानों ने दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। हमारी प्राचीनतम गुरुकुल शिक्षण प्रणाली दुनिया में कौतूहल का विषय बनी रही। तमाम सभ्यताएं पठन-पाठन के हमारे ही बताए रास्ते पर चलती दिखीं। सदियों तक हम अपने विश्व गुरु के रुतबे पर न केवल इतराते रहे बल्कि उसे बरकरार रखने की हर संभव कोशिश भी करते रहे। शनै: शनै: हमारी यह कोशिश क्षीण होती गई।
हम ज्ञानार्जन की जगह बाजारोन्मुखी और व्यावसायिक शिक्षा दिलाने वाले मकड़जाल में घिरकर उबर नहीं सके। धीरे-धीरे हम पर थोपी गई यह विवशता हमारी शिक्षा प्रणाली को दीमक की तरह चाटती गई। आजादी के बाद शिक्षा के क्षेत्र में कच्छप गति से सुधार किए जाते रहे। किसी भी देश को विश्व की ताकत बनाने वाला यह अहम क्षेत्र कभी राजनीतिक दलों के एजेंडे में नहीं रहा। सहज अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में 34 साल बाद नई शिक्षा नीति लाई जा रही है। ऐसे में भारतीय शिक्षा प्रणाली के क्रमिक विकास या विकास के अहम पड़ावों पर एक नजर:
परंपरावादी शिक्षा: शुरुआती दौर में भारत में ब्राह्मण परिवार शिक्षा देते थे। मुगलों के समय में शिक्षा संभ्रांतवादी विचारधारा के अधीन थी।
ब्रिटिश शिक्षा तंत्र: अमीरों को शिक्षा के चलन को ब्रिटिश शासन ने और समर्थन दिया। ब्रिटिश शासन ने आधुनिक राज्य, अर्थव्यवस्था और आधुनिक शिक्षा तंत्र को बढ़ावा दिया।
नेहरू और शिक्षा: 19वीं सदी के शुरुआती दौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने राष्ट्रीय शिक्षा का नारा दिया। बेहतर शिक्षा के लिए देश में आइआइएम और आइआइटी जैसे उच्च शिक्षण व तकनीकी संस्थानों की नेहरू ने परिकल्पना की।
कोठारी समिति: 1964 में गठित कोठारी समिति ने देश के चहुंमुखी विकास के लिए निशुल्क शिक्षा और 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा को अहम माना। भाषाओं को और विकसित करने तथा विज्ञान की पढ़ाई को भी महत्तवपूर्ण माना।
शिक्षा की राष्ट्रीय नीति: 1986 में राजीव गांधी ने शिक्षा की राष्ट्रीय नीति(एनपीई) की घोषणा की। इस नीति ने भारत को 21वीं सदी के लिए तैयार किया।
ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड: 1987-88 में यह अभियान चला। इसका उद्देश्य प्राइमरी स्कूलों में विभिन्न संसाधनों को बढ़ाना था।
शिक्षकों की शिक्षा: 1987 में इसके तहत शिक्षकों की शिक्षा और ज्ञान को बढ़ाने के लिए संसाधन मुहैया कराए जाने लगे।
बच्चों को पौष्टिक आहार: 1995 में प्राइमरी स्कूलों में उपस्थिति और संख्या बढ़ाने के लिए ताजा पौष्टिक भोजन मुहैया कराया जाने लगा।
सबको शिक्षा: 2000 में सभी बच्चों को वर्ष 2010 तक शिक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से आंदोलन छेड़ा गया।
मौलिक अधिकार: 2001 में देश में 6-14 साल के बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य रूप से शिक्षा लेने को मौलिक अधिकार का प्रावधान दिया गया। बाद में इसे कानूनी जामा भी पहनाया गया।
Education System: भारत ने क्यों बदली शिक्षा नीतियाँ, क्या थी वजह